बेटी अपने फर्ज को पूरा जरुर करती हैं ? एक बेटी के फर्ज की दास्ता

शहर के अस्पताल में अजय का उपचार चलते-चलते 15-16 दिन हो गएँ थे|लेकिन उसकी तबीयत में कोई सुधार देखने को मिल रहा था| आईसीयू वार्ड के सामने परेशान दीपक लगातार इधर से उधर चक्कर पर चक्कर लगा रहे थे |कभी बेचैनी में आसमान की तरफ दोनों हाथ जोड़ कर भगवान से अपने बेटे की जिन्दगी की भीख मांगते तो कभी फर्श पर बैठकर फुट-फुट कर रोने लग जाते | उधर अस्पताल के एक कोने में अजय की माँ भी अपने बेटे के लिएँ भगवान से दुआ मांगती रहती थी | तभी आईसीयू से डॉक्टर साहब बाहर निकले तो दीपक उनके पीछे-पीछे दैडे और उनके पैर पकड़ का गिड़गिड़ाते हुए कहने लगे,डॉक्टर साहब मेरे बच्चे को बचा लो |कुछ भी करो |पर उसके इलाज में कोई भी कमी नहीं आनी चाहिएँ |"डॉक्टर अभिनव ने उन्हें उठाकर कहाँ देखिए अंकल हम आपके बेटे को बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं |उसकी तबीयत अब भी बहुत खराब हैं |इसका जल्द से जल्द ऑपरेशन करना पड़ेगा |जिसके के लिएँ कम से कम कुल 5 लाख तक खर्चा आएगा | आप वो पैसे काउंटर पर जमा करा दो हम ऑपरेशन शुरू करते हैं |
beti ka farj

कैसे भी हो आप मेरे बेटे को बचा लो साहब में पैसो का इन्तजाम एक-दो दिन में कर दूँगा |दीपक ने डॉक्टर के हाथ जोड़ कर कहाँ |काफी भाग दोड करने के बाद भी दीपक सिर्फ 2 लाख रुपय का ही इन्तजाम कर पाया था |तो परेशान दीपक ने अपनी बेटी शीतल को फोन किया |लेकिन फोन उसके दामाद ने उठाया हेल्लो कोन दीपक बेटा में तुम्हारा ससुर बोल रहा हूँ |रवि(दामाद) हाँ बोलियें पिताजी कैसे हो आप बेटा अजय की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है |डॉक्टर ने कहाँ की ऑपरेशन करना पड़ेगा |जिसमें 5 लाख रुपयों का खर्चा है |हमसे तो 2 लाख रूपए ही हुए हैं |अगर तुम कुछ पैसे ले आते तो |रवि देखिएँ पिताजी आप चिंता ना करे में तो नहीं आ सकता लेकिन में शीतल को तीन लाख रुपयों के साथ भेज देता हूँ | दुसरे दिन सुबह ही शीतल 3 लाख रुपयों के साथ अस्पताल पहंच गई | आख़िरकार सफल ऑपरेशन के बाद डॉक्टरों ने अजय को बचा ही लिया |
अब अजय की पढाई शुरू हो गई और उसने इंजीनियरिंग की पढाई पूरी की(इसके लिएँ कुछ जमीन बेचनी पड़ी ) और इसी बीच 10 साल गुजर गए | और अजय की गोवा एयरपोर्ट पर नौकरी लग  गई |और अजय ने अपने साथ काम करने वाली लड़की अंजली से शादी कर ली |और वहीँ रहेने लग गया |कुछ दिनों के बाद अजय ने अपने माता-पिता के घर आना बंद कर दिया |कई बार उसके पिता की तबीयत खराब हुई और माँ ने अजय को फोन भी किया लेकिन अजय नहीं आया |अब तो उसका किसी त्यौहार पर फोन भी नहीं आता था |एक दिन जब अजय के पिता खाना खा रहे तो तो इसी बीच फोन की घंटी बजी फोन उठाकर सुना तो अजय था |बोला कैसे हो आप सब सब ठीक तो है न |पापा मुझे एक परेशानी आ गई है इसके लिएँ मुझे 11 लाख रुपय चाहिएँ में कल आ रहा हूँ |आप पैसे तैयार रखना |दीपक बेटा तेरे ऑपरेशन में शीतल से 3 लाख रूपए लिएँ थे में वो अभी तक नहीं चूका पाया हूँ |तो तेरे लिएँ 11 लाख रूपए कहाँ से दे पाउँगा |बेटा मुझे माफ़ करना में इतने पैसो का इन्तजाम नहीं कर पाउँगा |इसके बाद दीपक कुछ और बोल पाते अजय गुस्से में भड़क उठा |पापा मुझे आपसे यही उम्मीद थी मुझे पता था की आप यही कहेगें |आपने जिन्दगी में मेरे लिएँ किया ही क्या है |जो अब करेगें |और अजय ने फोन काट दिया | अपने बेटे की ऐसी बात सुनकर दीपक को गहरा सदमा लगा |अब वो गुस्से में गुमसुम रहने लगे |सारे दिन घर में पड़े बडबडाते रहते |
एक दिन अचानक सुबह सीने में तेज दर्द होने लगा और नीचे जमीन पर गिर पड़े तो पत्नी ने पलंग पर बड़ी मुश्किल से लेटा दिया |उपमा(पत्नी) ने किसी से कह कर डॉक्टर को घर पर जल्दी आने को कहा |डॉक्टर साहब आये और जाचं की और कहाँ की इनकी तबीयत ज्यादा खराब है |इनको शहर में किसी बड़े अस्पताल में दिखाना पड़ेगा |अपने गाँव के नजदीक जिला अस्पताल में सारी जांचों और रिपोर्टों को देखने के बाद सीनियर डॉक्टर ने उपमा को अलग भुला कर कहाँ की अब इनका इलाज नहीं हो सकता |आप इनकी घर पर रह कर ही सेवा करों |डॉक्टर साहब की बात सुनकर उपमा घबरा गई और उसने अजय को फोन किया और अपने पापा से मिलने की कहीं और कहाँ की बेटा इस बार उनकी तबीयत बहुत खराब है शायद ये उनका आखरी वक्त भी हो सकता है |तुम कुछ दिनों के लिएँ घर आ जाओ |इतनी बात उनकर अजय ने काफी भला-बुरा कह दिया | और गुस्से में यहाँ तक कह दिया की आप लोगों से मेरा कोई रिश्ता नहीं है |और न ही मुझ से आज के अंदर पैसे मांगना और न ही फोन करना |इस बात को अपने दिमाग में अच्छे तरह से बैठा लो सुनाआपने,और फोन काट दिया |
अपने बेटे की ऐसी बात सुनकर उपमा घबरा गई |और पसीने से लथपथ चकरा कर जमीन पर बैठ गई |कुछ देर बाद अपने आपको समाला और अगले दिन मन करकर अपनी बेटी शीतल को फोन किया |हेल्लो बेटी शीतल !सुनो बेटी तुम्हारे पिताजी की तबीयत बहुत खराब हैं |अगर हो सके तो तुम और अपने पति को लेकर कुछ दिनों के लिएँ यहाँ आ जाओ तुम्हारे पिताजी तुम्हे बहुत याद कर रहे हैं |उधर से बेटी ने तुरंत जवाब दिया और कहाँ की माँ तुम चिंता मत करों में और वो(पति) कल सुबह ही आ जाते हैं |तुम बिरकुल चिंता मत करो | शीतल और रवि अगले दिन सुबह ही घर आ जाते है|जाकर देखा तो  उनके पास उनके करीबियों की काफी भीड़ जमा थी | और दीपक पलंग पर लेते हुए थे |जब बेटी ने ऐसी हालत में अपने पिता को देखा तो उनके गले से लग गई और काफी देर तो दोनों रोते रहे |रवि उन्हें समझने में लगा रहा |और बेटी ने चुप हो कर कहाँ पापा आप चिंता मत करो अब में आ गई हूँ |अब तुमे कुछ नहीं होगा |हम तुमें शहर में बड़े से बड़े अस्पतला में तुम्हार इलाज करेंगे |देखना तुम एक दम स्वस्थ हो जाओगे | पिता इतनी बात उनकर बेटी की कहने लगा की बेटा अब मुझे किसी इलाज की कोई जरूरत नहीं है |अब तुम आ गई हो तो में सुकून से मर सकूँगा |तू मेरे जाने के बाद अपनी माँ का ख्याल रखना |ऐसा मत बोलो पापा तुमको कुछ नहीं होगा |में आपको कुछ भी नहीं होने दूंगी |आप बिल्कुल चिंता मत करो |उसी दिन शीतल ने अपनी माँ से कहाँ माँ आपने पिताजी की बहुत सेवा कर ली अब मेरी बरी है |अब मुझे अपना फर्ज पूरा करने दो |
इसके बाद तो शीतल ने सेवा में दिन-रात एक कर दिए |समय पर दवा,नाश्ता,भोजन,नहलाना,और घंटों तक पैर दबाना मानो शीतल की दिनचर्या हो गई हो |और माँ-बेटी भगवान से भी जल्दी स्वस्थ होने की कामना करती रहती थी | इसी बीच कई बार दीपक ने बेटी को मना भी किया लेकिन हर बार बेटी ये कह कर चुप करा देती की जब हम छोटे थे तब तुम भी हमें खाना खिलाना,बाजार ले जाना,स्कूल ले जाना,कंधो पर बैठा कर घुमाना आदि किया करते थे |और अब जब मेरा फर्ज पूरा करने का समय है तो आप रोकते हो देखो अगर आज के अंदर मुझे सेवा करने से रोका तो में नाराज हो कर चली जाउंगी |इतनी बात बेटी की सुनकर दीपक चुप हो गया |इतनी सेवा शीतल की रंग लाने लगी और दीपक की हालत में धीरे-धीरे सुधार होने लगा |
एक दिन शीतल पापा को जूस पिला रही थी |तभी घर के बाहर कार रुकने की आवाज सुनाई दी |कुछ देर बाद अजय एक वकील के साथ अन्दर जाने लगा |अजय दरवाजे पर खड़ी उपमा को नमस्ते कहते हुए आगे बढ़ा तो उपमा ने हाथ पकड़कर रोक लिया और पूछ,"कोन हो तुम ?और कहाँ जा रहे हो ? अरे माँ में आपका बेटा अजय हूँ ,लगता है तुम अभी पहचान नहीं पाई मुझे |शायद सही कहाँ तुमने |इतना कहते हुए अजय दीपक के पलंग के पास जाकर खड़ा हो गया |
पापा! कैसे हो आप ?तभी दीपक ने बेटी के सहारे से बैठ कर कोन हो भाई तुम और ये वकील साहब कैसे आए|अजय पापा में आपका बेटा अजय |कोन अजय में किसी अजय को नहीं जनता और ना ही मेरा उससे कोई रिश्ता है |मेरा तो एक ही बेटा है और वो है मेरी बेटी शीतल |और इतना कहते हुए दीपक ने अपना मुहँ फेर लिया |और कहाँ वकील साहब शायद आप मेरी जायदाद अजय नाम कराने आए हो |लेकिन आपने आने में बहुत डदेरी कर दी |मैने अपनी पूरी वसीयत अपनी बेटी के नाम कर दी |जिसमें अब किसी भी तरह का बदलाव नहीं हो सकता हैं|
और बेटी से कह कर अंदर से कागजात निकलवा कर दिखाएँ और कहाँ की वकील साहब मैने बेटे के लिएँ बहुत दुआएँ मांगी और वो सब किया जो में कर सकता था |लेकिन सब बेकार गया |मुझे जिन्दगी भर अफसोस रहेगा |की मेरी शीतल जैसे और बेटी क्यों नहीं हुई |अब सब कुछ इसका है |यह जिन्दगी भी इसी की देन हैं |अब आप मेहरबानी करके यहाँ से चले जायें |यहाँ अजय का कोई भी नहीं रहता हैं |
यह बात सुनकर अजय के होश उड़ गए और वह मुंह लटकाकर बिना दस्तखत के बिना वकील के बिना पीछे देखे घर से बाहर चला जाता हैं |और जब तक कोई कुछ समझता अजय घर से कार की तरफ तेजी से चला जाता है |बाद में जब उपमा,शीतल और रवि और कुछ लोग भाग कर कार की तरफ बढ़े इतने में कार तेजी से चलने लगती है और सभी लोग कार से उड़े धुल की दीवार में रिश्तों और फर्ज की मजबूत दीवार को पल भर में गिरते हुए देखते रह जाते हैं |

ये लेख भी पढ़ें:

किडनी को कमजोर करने वाली हमारी सात आदतें कोनसी हैं ?

खुद को आराम देकर सफलता की ओर कैसे बढ़े ?{कहानी }

सफलता पाने के लिएँ इनको कहें ना !


तो दोस्तों आज की ये कहानी आपको कैसी लगी |हमें जरुर बताये और हम इस कहानी से क्या सीख सकते है |वो भी कमेंट करके जरुर बताएं |अगर या कहानी आपको अच्छी लगी हो तो इसे अपने दोस्तों को शेयर करना ना भूलें |

0 Comments